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दिल-ओ-दिमाग़ की दीवारें घेरे हैं परछाइयाँ,
दीन-ओ-दुनिया की बातें भरे हैं गहराइयाँ,
मसरूफ़ियत के बहाने सभी भूले हैं यारीयाँ!
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दिल-ओ-दिमाग़ की दीवारें घेरे हैं परछाइयाँ,
दीन-ओ-दुनिया की बातें भरे हैं गहराइयाँ,
मसरूफ़ियत के बहाने सभी भूले हैं यारीयाँ!
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उनींदी आँखों भरे सवाल,
अब और क्या फिर हल देखेंगे,
चलो अब सो ही जाते हैं,
कल उठे तो फिर कल देखेंगे!
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