Thursday, April 20, 2017

...आस्तीनो के साँप!

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क्यूँ मुझे घूरते है आस्तीनो के साँप,
डँसते नहीं,
क्या मेरे बदहालात को लेते है भाँप,
तहज़ीब वाले लगते है,
कहीं लखनवी तो नहीं,
कहते हैं,
पहले आप, पहले आप!
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Saturday, April 15, 2017

... फँसना बाक़ी!

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अभी ग़ुलामी की बंधी ज़ंजीरों का कसना बाक़ी है,
अभी बची कुची उम्मीदों का डँसना बाक़ी है,
अभी आहिस्ता आहिस्ता मुकम्मल फँसना बाक़ी है!
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...शर्तों सी!

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समझते हो, समझाते हो,
पहेलियाँ परतों सी उतारते हो,
जीतते हो, हारते हो,
ज़िंदगी शर्तों सी गुज़ारते हो!
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Tuesday, April 4, 2017

...आखर ढाई से!

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अब किस किस को बताएँगे,
पढ़ाएँगे हम यह सब,
अब जो गुज़री इस तरह,
जिस तरह ज़िंदगी हमारी,
तो अब सुने कौन,
तो अब पढ़े कौन,
ना इस मे वादे ख़ुशनुमा कल के है,
ना इस मे इरादे आनेवाले कल के है,
है तो बस यह ज़ुबानी दो टूक,
थोड़ी जी, बाक़ी भूल चूक,
अभी सोचे फिरो की वो पढ़ते होंगे,
जो रहा सहा गुमान वो भी चला जाएगा,
सच्चाई के चक्कर मे मत पड़,
जान कर क्या पाएगा,
भले छपवा दे यह सब स्याही से,
नहीं पढ़ते वो तेरे आखर ढाई से!
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...बातों सी बातें!

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ना दिन से दिन है ना रातों सी रातें,
सुलगते हुए अंगारे से दिन तेरे बिन,
भटकते हुए बंजारे सी रात तेरे बिन,
चाँद भी बिना चाँदनी सा,
गुलाब भी बिना चाशनी सा,
ना सुबह सी सुबह है ना शामों सी शामें,
ख़ामोश हवा भी है, तुझे कुछ पता भी है,
ना हँसी सी हँसी ना बातों सी बातें!
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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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