Thursday, September 27, 2018

...चरते घास!

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जिन से कुछ इंक़लाब की आस है,
वो भी वज़ीर बनके राजा के पास है,
जिन से उम्मीद थी की करेंगे ख़ास है,
वो भी गधे निकले, चरते सिर्फ़ घास है!
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Wednesday, September 26, 2018

...उम्मीदों सिरहाने!

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मेरे सिरहाने उम्मीदों का तकिया लगाने दे ‘या रब’,
नाउम्मीदियों को सर लगा के बहुत सो चुका हूँ मैं!
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Tuesday, September 4, 2018

...सोये रोये!

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तेरा तस्सवुर ‘या रब’,
बिन सोये, दिन रोये,
मिले बिन बिछड़े जब,
ना सोये, ना रोये!
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Saturday, September 1, 2018

...उम्मीद ए दीद!

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वो आगे बढ़ते चले गए,

हम उस दीद में फँसे रहे,

वो फ़तह करते चले गए,

हम उम्मीद में फँसे रहे!

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They kept on marching,

We were stuck in perspectives,

They kept on winning,

We were stuck in prospectives!

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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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