'या रब'
~ ~ ~ शेर-ओ-शायरी ~ ~ ~
Tuesday, August 9, 2016
...हरियाली कहाँ!
~ ~ ~
सुर्ख़ हुई ज़िंदगी सिर्फ़ लाली यहाँ,
पैराहन के अलावा हरियाली कहाँ!
~ ~ ~
Sanguine life only red here is seen,
Apart from the robe what's green!
~ ~ ~
§
Saturday, August 6, 2016
... उधड़े हुए!
~ ~ ~
अब के कहता हुँ तो कुछ सुन पाता नहीं,
सुनता हूँ तो कुछ समझ पाता नहीं,
यूँ उलझती जा रही है ज़िंदगी,
जैसे ऊन किसी उधड़े हुए के सिलने को हो,
कभी सुलझती सी लगती है भला पर फिर उलझ जाती है,
जैसे सकूँ किसी बिछड़े हुए के मिलने को हो!
~ ~ ~
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