Saturday, August 6, 2016

... उधड़े हुए!

~ ~ ~
अब के कहता हुँ तो कुछ सुन पाता नहीं,
सुनता हूँ तो कुछ समझ पाता नहीं,
यूँ उलझती जा रही है ज़िंदगी,
जैसे ऊन किसी उधड़े हुए के सिलने को हो,
कभी सुलझती सी लगती है भला पर फिर उलझ जाती है,
जैसे सकूँ किसी बिछड़े हुए के मिलने को हो!
~ ~ ~
§

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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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