Thursday, September 21, 2017

... रिसती ज़िंदगी!

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रिसती रही ज़िंदगी आँखों से,
अब खोखला हो गया हूँ में,
कभी जोश-ए-वलवले थे,
अब पस्त-ए-हौसला हो गया हूँ में,
लगता था ज़मीं मिल गयी,
बस ही जाऊँगा,
तिनकों बिखरा घोंसला हो गया हूँ में,
क्या क्या होना चाहता था,
क्या क्या हो सकता था,
'या रब' अब क्या हो गया हूँ में,
खोखला हो गया हूँ में!
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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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