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कभी तुझसे भी हुई होगी अदावत थोड़ी सी,
वही रहम ज़ेहन कर दे, दे राहत थोड़ी सी,
हो रही है अब वक़्त से शिकायत थोड़ी सी,
वो मुसलसल गुज़रे जा रहा है,
और हम कहे की दे दे मोहलत थोड़ी सी!
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वो मुझसे अनजान बेख़बर जा रहे हैं,
हम ख़ामोश बेहोश से जिये जा रहे है,
जी चाहे उनको जी भर यूँ गले लगा लूँ,
मेरे सब आग़ोश यूँ हवाओं मे जा रहे है!
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मेरे साथ रह कर भी ऐसे हो जैसे हम कभी मिले नहीं,
दूर रह कर भी ऐसे हो जैसे हम कभी जुदा नहीं,
मेरी हर एक साँस की आस हो तुम,
जुदा कहाँ! यही कहीं मेरे आस पास हो तुम,
इससे बेहतर था की जुदा होते ही मर जाते,
वैसे भी तेरे बिन हम सिर्फ़ मरे जिये,
तू गयी सही, गयी,
ज़िंदगी फ़िर कभी ना हुई नयी,
हर मुक़ाम पर शिकस्त पायी,
तुझको पाने की चाह मे ज़िंदगी गँवायी!
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26/05/2011