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उनके कहने से मैं यहाँ संगमरमर की चादर ओढ़े लेटा हूँ,
वो अब भी मुझसे कहते हैं कि मेरे संग मर क्यों नहीं जाते,
सब दरवाज़े दरख़्तों से सख़्त हो गये हैं,
सब दीवारें खंडहर बेवक़्त हो गई हैं,
वो अब भी मुझसे कहते हैं कि मेरे संग घर क्यों नहीं आते!
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A passerby’s ode to Humayun’s Tomb
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