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वो कुर्सी बदलते ही अपनी आवाज़ बदल लेते हैं,
सवाल वही रहते हैं वो अपने जवाब बदल लेते हैं,
कैसी उनके ज़हन की ताक़त है,
वो दिमाग़ बदलते ही दिल बदल लेते हैं,
हाव भाव क्या वो अपना ज़मीर बदल लेते हैं,
हम पाले के किनारे तमाशबीनों से,
हैरत से देखते रहते और वो खेल बदल लेते है,
अजीब करिश्माई है यह पाले की लखीरें,
वो पाला बदलते ही अपने अन्दाज़ बदल लेते हैं,
आवाज बदल लेते है!
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