Friday, August 11, 2017

...पाले की लखीरें!

~ ~ ~
वो कुर्सी बदलते ही अपनी आवाज़ बदल लेते हैं,
सवाल वही रहते हैं वो अपने जवाब बदल लेते हैं,
कैसी उनके ज़हन की ताक़त है,
वो दिमाग़ बदलते ही दिल बदल लेते हैं,
हाव भाव क्या वो अपना ज़मीर बदल लेते हैं,
हम पाले के किनारे तमाशबीनों से,
हैरत से देखते रहते और वो खेल बदल लेते है,
अजीब करिश्माई है यह पाले की लखीरें,
वो पाला बदलते ही अपने अन्दाज़ बदल लेते हैं,
आवाज बदल लेते है!
~ ~ ~
§

1 comment:

  1. खूब समझी और खुब कही लकीरो की कहानियां।
    यूँ बेरंग बेमानी समझा जीने, वो इतनी कमल निकली,
    क्या दोस्त क्या नाते रिशतेदार, सभी फैल निकले,
    पार करते सभी ने अपने लहजे बदले किरदार बदले।

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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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