Sunday, October 15, 2017

...मज़बूर दूरियाँ!

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रातें दिनों को उधेड़ती रहीं,
हक़ीक़त ख़्वाबों को जलाती रही,
ख़ामोशी मजबूरियाँ जताती रही,
ज़िंदगी दूरियाँ बढ़ाती रही!
~ ~ ~
§
15.10.2011

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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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