Sunday, October 21, 2018

...मेरा कल!

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शायद कहीं किसी कोने मे मेरा कल छुपा हुआ मुझे देखता है,
शायद मैं उसको अनदेखा कर देता हूँ की वो ऐसा नहीं होगा,
शायद वो उस कोने कि अंधेरे जैसा नहीं होगा,
शायद वो उस खिड़की से झाँकती हुई रोशनी जैसा होगा,
शायद वो कोने से छुपा हुआ मुझे देखता है इस आस में की जो पास है उसे अपना ले,
शायद वो कहता है वो रोशनी सिर्फ़ एक सपना है,
शायद कोने मे पड़ा हुआ तेरा मैं, तेरा कल, बस तेरा अपना है!
~ ~ ~
§
21st October, 2013

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