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कुछ सवेरे शाम से
कुछ मिले बेनाम से
कुछ रहे नाकाम से
कुछ रातों के सहारे
कुछ भूले हुए किनारे
कुछ तेरे लिखे पैग़ाम से
कुछ सुनहेरे तेरे नाम से
कुछ बेबस अंजाम से
कुछ भागते परेशान से
कुछ झाँकते गिरेबाँ मे
कुछ सवेरे फिर शाम से
अब मेरे किस काम से!
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