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मुझको क़यामत तक तेरी मोहब्बत के फ़साने याद आएँगे,
मिलने की एक बात, बिछड़ने के हज़ार बहाने याद आएँगे,
जब तक सलामत रहे, फिर वो जाल फँसाने बाद आएँगे,
बढ़ते पर बढ़ ना सके, इतने ग़म वो सिरहाने लाद आएँगे,
शिकन-ए-पेशानी देख ‘या रब’ मुझे बहलाने शाद आएँगे!
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खूब
ReplyDeleteबहूत खूब
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा, बहुत खूब।
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteKya khoobsoorat shayri h...
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