Tuesday, May 18, 2021

…मंजर ए मसान!

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जो मेरी काँपती आवाज़ की घबराहटें समझ पाते,
वो रिसती हुई ज़िंदगी की आहटें समझ जाते,
कब तलक यह मंजर-ए-मसान रहेगा,
कब तलक दिखेंगे यह सन्नाटे समझ पाते!
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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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