Tuesday, April 4, 2017

...आखर ढाई से!

~ ~ ~
अब किस किस को बताएँगे,
पढ़ाएँगे हम यह सब,
अब जो गुज़री इस तरह,
जिस तरह ज़िंदगी हमारी,
तो अब सुने कौन,
तो अब पढ़े कौन,
ना इस मे वादे ख़ुशनुमा कल के है,
ना इस मे इरादे आनेवाले कल के है,
है तो बस यह ज़ुबानी दो टूक,
थोड़ी जी, बाक़ी भूल चूक,
अभी सोचे फिरो की वो पढ़ते होंगे,
जो रहा सहा गुमान वो भी चला जाएगा,
सच्चाई के चक्कर मे मत पड़,
जान कर क्या पाएगा,
भले छपवा दे यह सब स्याही से,
नहीं पढ़ते वो तेरे आखर ढाई से!
~ ~ ~
§

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