Saturday, November 8, 2025

…यार हैं!

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जो कुछ धागों से बंधे हुए हम यार हैं,

खिंचे खिंचे भी रहे पर साथ निसार हैं,

जो मुद्दतें हुई कहीं सुनी से भी पार हैं,

मिले तस्वीरों से पर साथ गुलज़ार हैं!

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Monday, October 13, 2025

…ज़िंदगी चाहिए!

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मुझको मेरी सी ही ज़िंदगी चाहिए,

मेरी ही ख्वाहिशें और मेरी ही जद्दोजहद,

मेरी ही हसरतें और मेरा ही वजूद चाहिए,

तुझसी ना अक्ल ना तौर तरीक़े मेरे,

मुझे ना तेरी तरकीब और सलीके चाहिए,

मुझको जो मेरे लिए सोची उसने,

मुझको जो मेरे लिए लिखी उसने,

वही आम सी बेनाम सी ज़िंदगी चाहिए,

मुझको मेरी सी ही ज़िंदगी चाहिए!

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Sunday, September 14, 2025

…सयाने मिलेंगे!

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हम सी मिट्टी के बने भी कहीं लोग मिलेंगे,

आधे मुरझाये फूल भी किसी बाग खिलेंगे,

सिर्फ़ वही जीने का तरीका किताबी नहीं,

हम सा जीने मे भी तो यूँ कुछ ख़राबी नहीं,

कहीं हम से भी राब्ता कुछ दीवाने मिलेंगे,

दीन दुनिया से बेख़बर कुछ सयाने मिलेंगे!

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Saturday, August 23, 2025

… भूले यारीयाँ!

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दिल-ओ-दिमाग़ की दीवारें घेरे हैं परछाइयाँ,

दीन-ओ-दुनिया की बातें भरे हैं गहराइयाँ,

मसरूफ़ियत के बहाने सभी भूले हैं यारीयाँ!

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Saturday, August 2, 2025

…कल देखेंगे!

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उनींदी आँखों भरे सवाल,

अब और क्या फिर हल देखेंगे,

चलो अब सो ही जाते हैं,

कल उठे तो फिर कल देखेंगे!

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Thursday, July 17, 2025

…पार जाएँगे!

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किस पहचान को पाकर जान पायेंगे,

तमगे ताज तिजोरी से पार कब पायेंगे,

नाम के पहले भी तो कोई बेनाम होगा,

उसको ढूँढो, उसके साथ ही पार जाएँगे!

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Wednesday, June 18, 2025

…या रब, यह सब!

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कैसे लिख लेते हो हालात यूँ ही दिल के,

कैसे कह देते हो हर बात यूँ ही मिल के,

कैसे उन जज़्बातों को हवा देते हो,

कैसे उन मुलाक़ातों को वफ़ा देते हो,

हज़ारों के हर ग़म मे शामिल हो जाते हो,

हज़रतों के करम के क़ाबिल हो जाते हो,

आख़िरी वक्त तक जी जान लगाते हो,

हौसला मुसलसल कहाँ से लाते हो?

कैसे लिख लेते हो ‘या रब’,

शायरी वायरी और यह सब!

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Monday, April 21, 2025

…प्रभु तैसे!

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बैठा सोचूँ काहू को कैसी,

मिली ज़िंदगी ऐसी वैसी,

राज काज काहू को कैसे,

मिले ठाठ बाट ऐसे वैसे,

मजबूरी काहू को पहाड़ जैसी,

मिले मजूरी अधूरी ऐसी वैसी,

लेटा सोचूँ काहे को ऐसे,

प्रभु चलाए मोहे जैसे तैसे!

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Friday, April 11, 2025

…संगमरमर की चादर!

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उनके कहने से मैं यहाँ संगमरमर की चादर ओढ़े लेटा हूँ,

वो अब भी मुझसे कहते हैं कि मेरे संग मर क्यों नहीं जाते,

सब दरवाज़े दरख़्तों से सख़्त हो गये हैं,

सब दीवारें खंडहर बेवक़्त हो गई हैं,

वो अब भी मुझसे कहते हैं कि मेरे संग घर क्यों नहीं आते!

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A passerby’s ode to Humayun’s Tomb

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Thursday, February 27, 2025

…बेकार इंतिज़ार!

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कितने भागते खपते खपाते,

कितने लहजों से बातें बनाते,

कितने लफ़्ज़ों मे मकसद बताते,

शाम तक आते सब दर किनार कर देते,

कितने हिसाब बही खाते बेकार कर देते,

शाम तक आते सब तेरा इंतिज़ार कर देते!

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Wednesday, February 19, 2025

…उसकी मर्जी!

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उस रोज़ की जद्दोजहद,

और इस रोज़ का जल जाना,

उस रोज़ की सिकश्त,

और इस रोज़ का समझ जाना,

उस रोज़ की हाए तौबा,

और इस रोज़ का यूँ सकूँ पाना,

हर रोज़ एक ही कोशिश,

उसकी मर्जी से ही चलते जाना!

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…झूठ रूठ!

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इतना सारा सच,

और बस ज़रा सा झूठ,

इतना सारा प्यार,

और फिर भी रूठ रूठ!

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…चंद सुनगुनी!

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वो जो आवाज़ ए बुलंद मे कही,

वो जो फिर भी रही बंद अनसुनी,

वो जो बेशुमार प्यार से भरी रही,

वो जो फिर भी रही मंद गुनगुनी,

वो जो जी जान झोक के करी,

वो जो फिर भी रही चंद सुनगुनी!

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        [सुनगुनी: उड़ती सी ख़बर]

Sunday, January 19, 2025

रहम-ओ-करम!

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एक ज़ीस्त-ए-रहम जीना,

और भरम का बढ़ते जाना,

एक इबादत मे सर झुकाना,

और करम का बढ़ते जाना!

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ज़ीस्त: existence

भरम: trust

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~ ~ ~ the seeker is sought ~ ~

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