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कितने भागते खपते खपाते,
कितने लहजों से बातें बनाते,
कितने लफ़्ज़ों मे मकसद बताते,
शाम तक आते सब दर किनार कर देते,
कितने हिसाब बही खाते बेकार कर देते,
शाम तक आते सब तेरा इंतिज़ार कर देते!
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कितने भागते खपते खपाते,
कितने लहजों से बातें बनाते,
कितने लफ़्ज़ों मे मकसद बताते,
शाम तक आते सब दर किनार कर देते,
कितने हिसाब बही खाते बेकार कर देते,
शाम तक आते सब तेरा इंतिज़ार कर देते!
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उस रोज़ की जद्दोजहद,
और इस रोज़ का जल जाना,
उस रोज़ की सिकश्त,
और इस रोज़ का समझ जाना,
उस रोज़ की हाए तौबा,
और इस रोज़ का यूँ सकूँ पाना,
हर रोज़ एक ही कोशिश,
उसकी मर्जी से ही चलते जाना!
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वो जो आवाज़ ए बुलंद मे कही,
वो जो फिर भी रही बंद अनसुनी,
वो जो बेशुमार प्यार से भरी रही,
वो जो फिर भी रही मंद गुनगुनी,
वो जो जी जान झोक के करी,
वो जो फिर भी रही चंद सुनगुनी!
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[सुनगुनी: उड़ती सी ख़बर]
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एक ज़ीस्त-ए-रहम जीना,
और भरम का बढ़ते जाना,
एक इबादत मे सर झुकाना,
और करम का बढ़ते जाना!
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ज़ीस्त: existence
भरम: trust